चतुर्वेदी महासभा पृष्ठभूमि एवं परिचय
सन १८५७ के संग्राम के पश्चात देश में साहित्य , संस्कृति शिक्षा विधान एवं कला कौशल के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए नव जागरण हुआ। हमारे पूर्वज भी पीछे नहीं रहे। जातीय चेतना जागृत करने का प्रथम श्रेय इटावा के चौबे जगन्नाथ जी (१८२०-१९०२) को है। वे मैनपुरी के जिला स्कूल में संस्कृत के अध्यापक नियुक्त हुए। वहां उन्होंने दम्मी लाल मिश्र (१८५६-१९०२) के सहयोग से जातीय सुधार लाने के उद्देश्य से सन १८७३ में बैठक आरम्भ की।
कलकत्ता में सन १८९० में (फागुन सुदी तेरस सम्वत १९४७ ) रवि वार को राजा कटरा में सभा का आयोजन हुआ उसमे गांव सदस्य का नेतृत्व इस प्रकार हुआ
महासभा माथुर चतुर्वेदी समाज के सदस्यों के सांस्कृतिक , आर्थिक , सामाजिक विकास के लिए पिछले १०० वर्षों से कार्यरत है। इस संस्था की सर्वोच्च निर्णायक समिति का चयन सदस्यों द्वारा मतदान से किया जाता है। इसका कार्यकाल २ वर्ष का होता है। विभिन्न नगरों में गठित चतुर्वेदी समाज की सभायें इस महासभा से सम्बद्ध हो कर इसके घोषित उद्देश्यों के लिए कार्य करती हैं. सामान्यतः प्रत्येक तिमाही में इसके कार्यकारिणी सदस्यों की बैठक होती है जहाँ एकत्रित सदस्यों के मतानुसार सामाजिक कार्क्रमों का निर्धारण किया जाता है।
मथुर चतुर्वेदी महासभा के पदाधिकारी
हमारी महासभा की सफलता और सुदृढ़ता में हमारे पदाधिकारी प्रमुख भूमिका निभाते हैं। समर्पण, नेतृत्व, और समुदाय की प्रगति के प्रति प्रतिबद्धता के ध्येय से प्रेरित होकर वर्तमान और पूर्व पदाधिकारियों ने समाज को एक नई दिशा दी है। नीचे दिए गए बटन पर क्लिक कर, आप वर्तमान और पूर्व पदाधिकारियों की जानकारी लेकर उनके योगदान के बारे में विस्तार से जान सकते हैं।